हजारों की संख्या में कांग्रेस और अन्य दलों से नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल करने के बावजूद भाजपा मतदान प्रतिशत के तय लक्ष्य से दूर रह गई। लोकसभा की पांचों सीटों पर कम मतदान से भाजपा परेशान है और पार्टी ने जल्द ही इसकी समीक्षा करने का फैसला किया है। पार्टी के लिए चिंता की बात यह भी है कि चुनाव से पहले कांग्रेस जिन पूर्व विधायकों पर भाजपा में शामिल कराया गया था, उनकी विधानसभा क्षेत्रों में भी वोट प्रतिशत पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव से कम रहा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पहले चरण के मतदान में कम मतदान ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व को भी चिंता में डाल दिया है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सभी प्रदेश अध्यक्षों को बूथ प्रबंधन की रणनीति को जमीन उतारने के लिए गंभीर प्रयास करने के निर्देश दिए हैं। उत्तराखंड में चूंकि मतदान हो चुका है, इसलिए प्रदेश संगठन की ओर से कम मतदान के संबंध में केंद्रीय नेतृत्व को रिपोर्ट भेजी जाएगी। पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, चुनाव प्रचार के दौरान जिस तादाद में नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस व अन्य दलों को छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे थे, पार्टी को लग रहा था कि मतदान की प्रतिशत बढ़ेगा, लेकिन नतीजा इसके ठीक विपरीत आया है। खासतौर पर पूर्व विधायकों के चुनाव क्षेत्रों में कम मतदान को लेकर पार्टी की उम्मीदों को झटका लगा है। मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए पार्टी ने बूथ प्रबंधन का रोडमैप बनाया था, लेकिन यह भी जमीन नहीं उतर पाया। 2022 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में हुए मतदान का तुलनात्मक विश्लेषण करने पर यह तथ्य सामने आया कि 2024 के चुनाव में मतदान प्रतिशत काफी कम रहा, जबकि कुछ विधानसभा सीटों पर 2022 के चुनाव में पहले व दूसरे तथा कुछ जगह तीसरे स्थान पर रहे प्रत्याशियों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। इस हिसाब से इन सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ना चाहिए था, लेकिन बढ़ने के बजाय यह घट गया।