इतिहास ऐसे ही नहीं बनते इतिहास रचने के लिए करना पडता है, संघर्ष और कड़ी मेहनत, यदि संघर्ष पुरी सिद्दत से किया जाए तो इतिहास आपकी कामयाबी का खुद गवाह बन जाता है, जी हां कुछ ऐसे ही संघर्ष और कड़ी मेहनत से जिसने उम्र के नंबरों को हराकर इतिहास रचा हो, ऐसी उडनपरी दादी की कहानी आज हम आपको बतायेंगे यूं तो दादी नानी कहानियां सुनाती है, लेकिन यहां दादी की कहानी बड़ी ही रोचक है, क्योंकि उड़न परी नाम से पहचान कायम करने वाली इन दादी ने 108 वर्ष की उम्र में 100 मीटर दौड़ में पहला स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल जीता है, है ना हैरानी वाली बात, जी हां जिस उम्र में दादा दादी बिस्तर पकड कर चलने के लिए सहारे तलाशते हैं उस उम्र में ये दादी फिरकी बनकर दौडती है और अच्छे अच्छे जवानों को भी रेस में पछाड़ देती है, कौन है उडनपरी दादी पढिये ये रोचक कहानी।
‘एज इज जस्ट ए नंबर’। जी हां उम्र सिर्फ एक नम्बर है जो बढ़ता जाता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके हौसले ये नम्बर नहीं तोड़ सकते, इसका उदाहरण हैं हरियाणा की ‘उड़नपरी’-परदादी। उत्तराखंड में आयोजित हुई 18वीं युवरानी महेंद्र कुमारी राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देशभर के युवाओं के साथ बुजुर्ग खिलाड़ियों ने भी अपना दम दिखा रहे थे, जिसमें हरियाणा की 106 वर्षीय रामबाई ने 100 मीटर रेस में पहला स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल जीता। अपनी तीन पीढ़ी के साथ प्रतियोगिता में भाग लेकर रामबाई ने 100 मीटर, उनकी बेटी संतरा और पोती शर्मिला सांगवान ने पांच किलोमीटर की दौड़ में प्रतिभाग किया। हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव कादमा की रहने वाली रामबाई राष्ट्रीय स्तर की एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अपनी तीन पीढ़ियों के साथ 100, 200 मीटर दौड़, रिले दौड़, लंबी कूद में 4 गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास बना चुकी हैं। देहरादून में भी रामबाई ने इन चारों प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता है। रामबाई अपने गांव की सबसे बुजुर्ग महिला हैं और उन्हें लोग ‘उड़न परी’- परदादी कह कर बुलाते हैं। वो खुद को फिट रखने के लिए रोज सुबह 5-6 किलोमीटर की दौड़ लगाती हैं। उनकी पोती शर्मिला सांगवान ने बताया, कि वो उन खिलाड़ियों के परिवार से आते हैं जिन्होंने पहले कई पुरस्कार जीते हैं।